चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है…
इस गाने को अपनी आवाज़ से घर-घर तक पहुंचने वाले मशहूर गजल गायक का निधन हो गया है। वह 72 साल के थे।बीते 10 दोनों से मुंबई के ब्रिज कैंडी अस्पताल में भर्ती थे उनके मैनेजर ने बताया कि वह बीमार थे और उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। सोमवार सुबह करीब 11:00 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
बीबीसी की ममता गुप्ता ने पंकज उदास के साथ खास बातचीत:
वह पद्मश्री से सम्मानित थे कई साल पहले बीबीसी की ममता गुप्ता ने पंकज उदास के साथ खास बातचीत की थी लिए सुनते हैं उसे इंटरव्यू के अहम अंश… संगीत में आपकी दिलचस्पी कैसे हुई मेरा जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जिसमें मेरे पिता दिलरुबा एक बहुत मशहूर इसाज है।
पंकज उदास जी के परिवार के बारे में:
मेरे पिता इसराज शौकिया तौर पर बजाते थे और जहां तक मेरी माता का सवाल है उनका गला बहुत मीठा था बहुत अच्छा गाती थी। मेरे दो बड़े भाई हैं मनहर जी और निर्मल जी दोनों बहुत अच्छा गाते हैं। मनहर जी ने तो खैर फिल्मों के लिए ढेर सारे गाने गए हैं। जब बहुत सारे श्रोता यह नहीं जानते कि मनोहर जी आपके बड़े भाई हैं, उनसे छोटे हैं निर्मल और मैं सबसे छोटा। अच्छा आपकी कुछ गजलें काफी मशहूर हुई हैं जिनमें आपने बहुत नाम कमाया।
पंकज उदास कैसे शुरुआत की और उनको कब शोहरत मिली?
बताएं कि आपने कैसे शुरुआत की और आपको कब शोहरत मिली? बहुत ही मशहूर शेर है कि मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग आते गए और काफिला बनता गया। मेरा भी कुछ ऐसा ही किस्सा है। जब मैं शुरुआत की थी बिल्कुल अकेला था। पहले तो मैं आपको यह बता दूं कि कि मेरा एक ऐसे इलाके से ताल्लुक है जहां यह जबान नहीं बोली जाती। मेरे बड़े भाई साहब मनहर जी को उर्दू सीखने एक मौलवी साहब आया करते थे। उस जमाने क्या था जो हमारे पुराने संगीतकार थे अभी उनमें से कुछ लोग हैं शास्त्री संगीत और जबान पर ज्यादा जोर देते थे |
मेरा उर्दू से दूर तक कोई रिश्ता नहीं था:
मैं सेंट जेवियर कॉलेज में पढ़ता था जहां पर मेरा उर्दू से दूर तक कोई रिश्ता नहीं था लेकिन जबान में ही कुछ ऐसे ही खास बात है जिसके लिए मैं अपना खिंचाव महसूस कर रहा था।मैं सीखना शुरू किया उसके बाद मेरी शुरुआत हुई। बाद मेरी ग़ज़ल में दिलचस्पी शुरू हुई। मेरा जो पहले रिश्ता संगीत से बना वह शायरी से शुरू हुआ। आप यह बताइए कि आपको शोहरत कब मिली?
सुरखुरू होता है इंसान ठोकरे खाने के बाद, रंग लाती है हिना पत्थर से पीस जाने के बाद:
1970 से लेकर 1980 तक 10 साल तक बराबर लगभग हर एक आर्टिस्ट को करना पड़ता है सहना पड़ता है कहते हैं कि.. सुरखुरू होता है इंसान ठोकरे खाने के बाद, रंग लाती है हिना पत्थर से पीस जाने के बाद। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ वह साल का जो हिस्सा था मेरी पूरी जिंदगी के साथ पूरा संघर्ष में बीता। और संघर्ष के उस दौर में हमें यह पता चला कि काम इतना आसान नहीं है जितना हम समझते हैं।
अच्छा कभी आपको लगा कि हम इसको छोड़ दें..
हां मैंने छोड़ दिया था 1976 में छोड़कर में अमेरिका चला गया था, फिर 1 साल कनाडा में रहा, आ गया तो था किसी और मकसद से लेकिन वहां पर भी मैं प्रोग्राम करने लगा। वहां लोगों ने मुझे बहुत पसंद किया वहां भी मैं गजलें ही गा रहा था। वहां मैं 1 साल रहा और फिर मुझे ऐसा लगा कि मैं अपना वक्त क्यों जाया कर रहा हूं।
बहरहाल मैं वहां से वापस लौटा तो 1978 से वही संघर्ष फिर शुरू। और तब जाकर मैं 1979 में पहला एल्बम बनाया जिसका नाम था आहट। आहट के बाद मैंने एक और एल्बम किया मुकर्रर के नाम से और यह मेरी जिंदगी का एक टर्निंग पॉइंट था और यहां से मुझे शौहरत मिलनी शुरू हो गई। एल्बम में कई सारी ऐसी गज़ल हैं जो आज ही मुझे स्टेज में गाने पड़ते हैं।फिर एक मशहूर गजल थी।
ऐ दर्द की बारिश है जरा मध्यम आहिस्ता चल की दिल की मिट्टी है अभी नम आहिस्ता चल
और एक मशहूर कलाम था अनवर फर्रुखाबाद का.. सबको मालूम है कि मैं शराबी नहीं फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूं सिर्फ एक बार नजरों से नजरे मिले कसम टूट जाए तो मैं क्या करूं? तो यह सब गजलें आज भी मुझे स्टेज पर गानी पड़ती हैं वहां से मक़बूलियत की शुरुआत हुई और लंबा अरसा गुजर गया और 20 साल निकल गए।
पंकज उदास जी के साथ हुए एक छोटे से इंटरव्यू में हुई वार्ता वह मैंने आपको चंद लाइनों में बताने का प्रयास किया है और सच तो यही है कि आज वह हम सबके बीच नहीं रहे हां उनके गाने और उनकी गजलें वे हमेशा और हमेशा हम सब के बीच रहेंगी हमारे होठों पर गुनगुनाहट के तौर पर हम उन्हें कभी नहीं भुला पाएंगे…